प्रकाशन की परम्परा और इतिहास को समृद्ध करने में हिन्दुस्तानी एकेडेमी के प्रकाशनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। एकेडेमी की परम्परा में सार्थक और स्तरीय पुस्तकों के प्रकाशन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। एकेडेमी के प्रकाशनों के उद्देश्य में व्यावसायिक लाभ को केन्द्र में कभी नहीं रखा गया। साथ ही हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं के प्रकाशन ने गुणवत्ता की दृष्टि से ख्याति अर्जित की। एकेडेमी के प्रकाशनों में हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं की विशिष्ट कृतियों के प्रकाशन के साथ-साथ उनके समीक्षात्मक मूल्यांकन को महत्व दिया गया है। यहाँ के प्रकाशनों की गौरवशाली परम्परा रही है जिनमें - हिन्दी भाषा का इतिहास-डाॅ0 धीरेन्द्र वर्मा, आर्य और द्रविड़ भाषा परिवारों का संबंध - डाॅ0 राम विलास शर्मा, अवधी का विकास- डाॅ0 बाबू राम सक्सेना, जायसी, लोकतंत्र की कसौटियाँ, छठवाँ दशक- विजय देव नारायण साही, साहित्य, सौन्दर्य और संस्कृति- डाॅ0 गोविन्द चन्द पाण्डे, हिन्दी भाषा और नागरी लिपि- संपा0 श्री लक्ष्मीकान्त वर्मा, साहित्य की मान्यताएँ- श्री भगवती चरण वर्मा, युगल चरण- श्री उमाकान्त मालवीय, मध्यकालीन भारतीय संस्कृति- डाॅ0 गौरीशंकर हीराचन्द ओझा इत्यादि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उर्दू साहित्य के भी महत्वपूर्ण ग्रन्थों ने प्रकाशन की परम्परा का संवर्द्धन किया है इनमें जवाहरे सुखन, इन्तख़ाब कलामे दाग़, नातन, माशियात मक़सद और मेन्हाज़- जैसे गौरवशाली ग्रन्थ हैं। एकेडेमी की परम्परा और प्रकाशन वैशिष्ट्य ने प्रकाशन के क्षेत्र में भी एक गंगा-जमुनी तहजीब का सिलसिला शुरू किया। उसके नये प्रकाशनों ने भी इस परम्परा को कायम रखा है।
हिन्दुस्तानी एकेडेमी द्वारा प्रकाशित शोध और सृजन पत्रिका ‘हिन्दुस्तानी’ विगत 80 वर्षों से हिन्दी भाषा, साहित्य के संवर्द्धन और अनुशीलन की दिशा में प्रयासरत है। शोध-संबंधी प्रमुख पत्रिका के रूप में इसका अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसके विशिष्ट विशेषांक प्रेमचंद, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, मैथिलीशरण गुप्त, राहुल, सूर, निराला, फ़िराक़, डाॅ0 बाबूराम सक्सेना, आचार्य विद्यानिवास मिश्र, सुमित्रानन्दन पंत, सुभद्रा कुमारी चैहान, डाॅ0 रामविलास शर्मा, डाॅ0 वृन्दावनलाल वर्मा, अमरकान्त, अली सरदार जाफरी, बाल साहित्य, ईस्मत चुग़ताइ एवं राजेन्द्र सिंह बेदी, पं0 अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, स्त्री-विमर्श भाग-1, स्त्री-विमर्श भाग-2, मुक्तिबोध विशेषांक आदि ने पाठकों के बीच में अपार लोकप्रियता पायी। प्रगति और विकास के साथ-साथ एकेडेमी के उद्देश्यों में नयी-नयी योजनाएँ जुड़ती गयी। विभिन्न भाषाओं के साहित्य व कृतित्व को उत्तरोत्तर विकास की ओर पहुँचाना एकेडेमी का मुख्य लक्ष्य है। समसामयिक परिवेश में आवश्यकता है साहित्यानुरागियों एवं विद्वज्जनों के सक्रिय सहयोग एवं मार्गदर्शन की, जिससे विभिन्न अवरोधों को पार कर एकेडेमी की सोद्देश्य यात्रा निरन्तर गतिशील एवं आलोकमयी बनी रह सके।